बिखरी छठ की छटा,ढोल-नगाड़ों और आतिशबाजी के साथ दिया उगते सूर्य को अर्घ्य

बिखरी छठ की छटा,ढोल-नगाड़ों और आतिशबाजी के साथ दिया उगते सूर्य को अर्घ्य

पिछले चार दिनों से उत्तराखंड में लोक आस्था और सूर्य उपासना के महापर्व छठ की छटा बिखरी रही। सोमवार को नहाय खाय के साथ छठ पूजा शुरू हो गई थी। दूसरे दिन खरना की रस्म पूरी करने के बाद महिलाओं ने निर्जला व्रत शुरू किया। तीसरे दिन यानी बुधवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन हो गया।

ढोल-नगाड़ों और आतिशबाजी के साथ कच्चे बांस के सूप में फल, फूल, पूजन सामग्री सिर पर रखकर जाते लोग और ‘कांचहि बांस की बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’ समेत छठ के लोकगीत गातीं महिलाएं…  घाटों पर यह मनोहारी दृश्य देखते ही बन रहा था। इस क्रम में बुधवार की शाम को पूजा-अर्चना के बाद व्रती महिलाओं ने कमरभर पानी में खड़े होकर अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को पहला अर्घ्य दिया।

उन्होंने सूर्यदेव और छठी मइया से पति की दीर्घायु के साथ संतान सुख की कामना की। इसके साथ ही गुरुवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व का समापन हो गया। इस दौरान खूब आतिशबाजी की गई। ढोल-नगाड़ों और छठ के गीतों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया।

इसे लेकर श्रद्धालुओं में गुरुवार सुबह से ही उत्साह दिखाई दे रहा था। व्रती महिलाएं जहां दिनभर छठी मइया की आराधना करती रहीं तो वहीं घर के अन्य सदस्यों ने शाम की पूजा के लिए दिनभर खरीदारी की।

शाम होते ही श्रद्धालु परिजनों के साथ पूजा की सामग्री लेकर गंगनहर के घाटों पर पहुंचे। पहले से ही चिह्नित बेदी पर पूजा का सामान रखकर व्रती महिलाओं ने पूजापाठ शुरू किया।

इसके बाद महिलाओं ने छठ पूजा में उपयोग होने वाली सभी सामग्रियों को एक बांस की टोकरी में रखा और सूर्य को अर्घ्य के लिए प्रसाद सूप में रखकर दीपक जलाया।

सूर्य अस्त होने से पहले ही महिलाएं कमरभर पानी में खड़ी हो गईं। सूर्य के अस्त होते ही अर्घ्य दिया और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना की और अगले दिन गुरुवार को तड़के उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस पर्व का समापन हो गया।

छठ पूजा के लिए बांस से बनी टोकरियों का विशेष महत्व होता है। महिलाएं बांस की टोकरी और सूप में पूजन की सामग्री रखती हैं।

इसमें मुख्य रूप से चावल, दीपक, सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब्जी, शकरकंदी, दूध, फल, शहद, पान, नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई और चंदन के अलावा ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, पूरी, चावल के लड्डू आदि सामान रखते हैं। 

गुरुवार को तड़के बिहार और पूर्वांचल समाज के लोग सिर पर बांस की टोकरी रखकर छठ मइया के गीत गाते हुए दिखे। इस दौरान श्रद्धालु ‘हे छठी मइया हर लीं बलैया’, ‘रिमिक झिमिक बोलेलीं छठी मइया’ आदि गीत गाते हुए आगे बढ़ रहे थे। वहीं, घाटों पर लोगों ने जमकर आतिशबाजी की और ढोल-तासों की गूंज के साथ ही छठी मइया के जयकारे लगाए।

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