आमतौर पर बाघ अपना इलाका बांटकर रहते हैं और बड़े क्षेत्र में काफी दूर-दूर नजर आते हैं, मगर उत्तराखंड में बाघों का व्यवहार बदल रहा है। उनमें नजदीकी बढ़ रही है। नैनीताल जिले की फतेहपुर रेंज में हाल ही में तीन बाघ और एक बाघिन को आसपास देखा गया। इससे पहले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी बाघों को अगल बगल देखा गया। इससे वन विभाग के अधिकारी हैरान हैं।
रामनगर के वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी बताते हैं कि देश-दुनिया में किए गए अध्ययन बताते हैं कि एक बाघ का इलाका कम से कम 20 किलोमीटर तक होता है। लेकिन पिछले दिनों फतेहपुर रेंज और कॉर्बेट में बाघों के आसपास रहने के मामले चौंकाते हैं। इससे खतरा भी बढ़ रहा है।
फतेहपुर रेंज में चार महीने में बाघ के लगातार हमलों को देखते हुए यहां 15 से 20 किलोमीटर के दायरे में 80 सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। इन कैमरों से मिली फुटेज से पता चला कि क्षेत्र में चार बाघ घूम रहे हैं। इस बात की पुष्टि भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने भी की है।
शोध की तैयारी:कुमाऊं की मुख्य वन संरक्षक डॉ. तेजस्विनी पाटिल ने बताया कि एक साथ चार बाघों की मौजूदगी चौंकाने वाली है। बदले व्यवहार को समझने के लिए वन विभाग अलग से शोध करेगा ताकि रणनीति बनाने में मदद मिल सके।
पंजे व मूत्र से बनाते हैं अपना क्षेत्र
बाघ अपने इलाके का निर्धारण मूत्र त्याग कर करता है। मूत्र की गंध इतनी तेज होती है कि उस क्षेत्र में आने वाले किसी भी बाघ को अंदाजा हो जाता है कि वह दूसरे बाघ का क्षेत्र है। इसके अलावा बाघ पेड़ों पर अपने नाखूनों के निशान लगाकर भी अपने इलाके को चिन्हित करता है। कई बार देखा गया है कि जब एक बाघ दूसरे के इलाके में घुसने की कोशिश करता है तो उनके बीच लड़ाई हो जाती है। फिर इसमें बाघ इतना गुस्सा हो जाता है कि वो मारने के बाद उसे खा भी लेता है।