नैनीताल : भू-राजस्व अधिनियम नगर निकाय क्षेत्रों में लागू है या नहीं? इस सवाल का स्पष्ट जवाब फिलहाल प्रदेश सरकार के पास नहीं है। हाई कोर्ट के देहरादून के संबंध में दिए गए दो फैसलों से यह असमंजस की स्थिति बनी है। जिसमें स्पष्टीकरण के लिए सरकार अब हाई कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है।
दिसंबर 2020 में हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शरद शर्मा की एकलपीठ ने संजय गुप्ता बनाम गढ़वाल मंडलायुक्त से संबंधित मामले में आदेश पारित किया। इसमें कहा कि नगर निकाय क्षेत्रों में रेवन्यू व फील्ड बुक पर राजस्व अधिकारियों का अधिकार नहीं है। भू-राजस्व अधिनियम के अंतर्गत जो कार्य राजस्व विभाग करता है वह कार्य म्यूनिसिपल कारपोरेशन एक्ट-1975 के तहत किए जाएं। इस आदेश में तहसील में दाखिल खारिज, पैमाइश, खसरा खतौनी, भूमि वाद से संबंधित वादों पर भी रोक लगा दी थी।
इस आदेश के बाद देहरादून सदर तहसील में ही दाखिल-खारिज के हजारों मामले लटके हैं। विधिक जानकारों के अनुसार यदि इस आदेश में संशोधन नहीं हुआ तो पूरे प्रदेश में निकाय क्षेत्रों में राजस्व अफसरों को भू-राजस्व अधिनियम के मामलों की सुनवाई से वंचित होना पड़ेगा। संजय गुप्ता बनाम गढ़वाल मंडलायुक्त के अलावा ज्योति कुमारी बनाम गढ़वाल मंडलायुक्त, प्रदीप बोरा बनाम गढ़वाल मंडलायुक्त के साथ ही एक जनहित याचिका में पारित आदेश के बाद यह मामला बेहद पेचीदा हो गया है।
बैठक के बाद सरकार ने बदला नजरिया
सूत्रों के अनुसार इस मामले पर शुक्रवार को देहरादून में दून नगर निगम के अधिकारी तथा शासन के उच्चाधिकारियों ने हाई कोर्ट में मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत के साथ बैठक की है। चूंकि हाई कोर्ट के एकलपीठ में संजय गुप्ता से संंबंधित मामले में पारित आदेश संविधान के अनुच्छेद-227 के तहत आता है अर्थात निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की है। ऐसे में इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही अपील की जा सकती है। लेकिन अब इसी तरह के तीन अन्य मामलों में हाई कोर्ट के अलग-अलग आदेश के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने के बजाय हाई कोर्ट में ही आदेश के स्पष्टीकरण को लेकर अर्जी दाखिल करने का निर्णय लिया है। जिसके लिए होमवर्क भी शुरू हो चुका है। सचिव राजस्व इसके लिए महाधिवक्ता को अनुरोध पत्र भेजेंगे, जिसके बाद अर्जी दाखिल की जाएगी।