हल्द्वानी : विधानसभा चुनाव से ठीक छह माह पहले सत्ता पर काबिज भाजपा ने कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। पहले धनोल्टी से निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार को भाजपा में शामिल किया गया। इसके बाद रविवार को पुरोला से कांग्रेस विधायक राजकुमार ने भी भगवा दामन थाम लिया। सियासी गलियारों में चर्चा अभी औरों की भी है। ऐसे में कांग्रेस के क्षत्रपों पर भी तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। खासकर उन लोगों पर जिन्हें हाईकमान में कांग्रेस ने नई जिम्मेदारी देकर चुनाव में फतेह का जिम्मा सौंपा था। अगर भविष्य में कांग्रेस के भीतर और टूट-फूट हुई तो फिर डैमेज कंट्रोल करना असंभव हो जाएगा।
जुलाई में एक माह के मंथन के बाद हाई कमान ने पूर्व सीएम हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष, गणेश गोदियाल को पीसीसी चीफ, प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने के साथ पंजाब के फार्मूले पर पहली बार चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति भी की। इसमें क्षेत्रीय व जातिगत समीकरणों का भी पूरा ख्याल रखा गया। तीन सितंबर से छह सितंबर तक कुमाऊं के दो जिलों में परिवर्तन यात्रा निकाल कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की गई। लेकिन फिलहाल सियासी मोर्चे पर कांग्रेस को अब भी बढ़त का इंतजार है। पार्टी के दिग्गज भाजपा के असंतुष्टों से संपर्क का दावा तो कर रहे हैं। मगर अभी मामला केवल चर्चाओं तक सीमित है।
पहली बार मात्र नौ विधायक
राज्य गठन के बाद से अब तक हुए चुनाव में कांग्रेस की सबसे बुरी स्थिति अब हो चुकी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ता हटने के साथ सिर्फ 11 विधायक रह गए थे। जून में नेता प्रतिपक्ष का निधन होने व अब पुरोला के विधायक राजकुमार के पाला बदलने से संख्या नौ पर आ गई। ऐसे में राज्य की सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही कांग्रेस की डगर मुश्किलों से भरी है।