तंगहाली के साथ कमजोर माइंडसेट वाले परिवेश में दिव्यांगता सच में अभिशाप ही मानी जाती रही है। लेकिन कई उदाहरण जब सामने आते हैं कि कमजोरी ही सबसे बड़ी ताकत बनी तो वह समाज के लिए प्रेरणा बन जाती है। उसी ताकत के बूते पौड़ी के कांता प्रसाद जैसी प्रतिभाएं सामने आकर समाज से टकराती हैं, खुद को व्यवस्थित करती हैं और यहां तक खेलों में भी अपनी प्रतिभा का भी लोहा मनवाती हैं।
शुरूआत हाल के घटनाक्रम से करते हैं। प्रदेश की राजधानी देहरादून में हुए राज्य स्तरीय खेल महाकुंभ में व्हील चेयर को धकेलते हुए पौड़ी के कांता प्रसाद जब स्टेडियम में आए तो हैरानी के सिवाय दर्शकों के चेहरों पर वह नहीं था जो खेल के रोमांच में होता है। तालियों की गंूज मानो हर किसी में रोमांच लाने असफल प्रयास कर रहीं हो।
घड़ी का कांटा टिक टिक करता हुआ आगे बढ़ा, और निर्धारित समय पर कांता प्रसाद जैसे दिव्यांग जनों के सामने लोहे के वजनी गोले पर जोर आजमाने की चुनौती आ खड़ी हो गई। शुरू में इन प्रतिभाओं की धड़कनें तेज होने के साथ ही चेहरों पर मायूसी व हीनता का भाव साफ झकल रहा था। लेकिन कहते हैं ना जिन्होंने दिव्यांगता जैसी दुश्कर हालातों पर ठोकर मार कर अपना रास्ता स्वयं बनाया हो, वह विपरीत परिस्थितियों को गले लगाने को हर वक्त तैयार रहता है। सीने में लंबी सांस भरते हुए प्रतिभाओं ने जो रंग जमाया वह अदभुत रहा।
16 पाउंड वजनी गोला दिव्यांग जनों की ताकत के आगे अपने हल्केपन को साफ महसूस कर रहा था। सभी ने इस वजनी लोहे पर जोर आजमाया और उस सिद्दत से आजमाया कि स्टेडियम जोश से भर दिया। व्हील चेयर में बैठकर परफार्म करने वाले दोनों पांवों से दिव्यांग कांता प्रसाद यहां आकर्षण का केंद्र रहे।
बता दें कि गत वर्ष हुई स्टेट लेवल स्पर्द्धाओं में भी व्हील चेयर पर बैठकर ही कांता ने चांदी पर भाला मार कर खुद की ताकत का लोहा मनवाया। स्पोर्टस के अलावा कांता भाई दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा भी हैं। वह समाज हितों के कामों में भी बढ़चढ़ कर प्रतिभाग करते हैं और जनपद के मतदाता आइकॉन भी हैं।
एक और बात, कोरोना महामारी में सब अपने घरों में कैद थे तो कांता खुले आसमान के नीचे पल रहे गरीब बेवशों की सेवा में जुट दिखे। सच में कभी हंसी का पात्र बनकर तिस्कार झेलने वाला कांता प्रसाद पौड़ी में नहीं पूरे प्रदेश मंे युवाओं के लिए भी प्रेरणा है और विपरीत परिस्थितियों को हरा कर जो आगे बढ़े वही एक असली स्टार है।