नतीजा दुनिया की उम्मीदों से बहुत दूर

क्लीन एनेर्जी मिनिस्टीरियल वार्ता: प्रदूषण मुक्त ऊर्जा व्यवस्था की उम्मीदों पर फिर गया पानी

भारत की मेजबानी में इस साल गोवा में चौथी G20 एनर्जी ट्रांज़िशन वर्किंग ग्रुप (ETWG) की बैठक आयोजित की गयी। उम्मीद थी कि इस बैठक के नतीजे दुनिया को प्रदूषण मुक्त ऊर्जा व्यवस्था की ओर बढ्ने में मदद करेंगे।मगर इस बैठक के बाद यह साफ़ हो गया कि इसका नतीजा दुनिया की उम्मीदों से बहुत दूर रहा।
कई दिनों की गहन बातचीत के बाद, G20 का एनेर्जी ट्रांज़िशन वर्किंग ग्रुप एक सर्वसम्मति से बना बयान भी जारी करने में विफल रहा। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने फ़ोस्सिल फ्यूल पर निर्भरता को चरणबद्ध तरीके से कम करने और रिन्यूबल एनेर्जी का रुख करने में तेज़ी की तत्काल चुनौतियों से निपटने के लिए दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाया।
इस बैठक के बाद जो बयान जारी हुआ वो सरल शब्दों में कहा जाए तो निराशाजनक ही था। फ़ोस्सिल फ्यूल पर निर्भरता को कम करने के प्रति प्रतिबद्धता की कमी इसी बात से लगाई जा सकती है कि पूरे दस्तावेज़ में फ़ोस्सिल शब्द मात्र दो बार ही प्रयोग हुआ।
ऐसा लगता है कि जी20 के कुछ सदस्य फ़ोस्सिल फ्यूल के बेरोकटोक प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के महत्वपूर्ण मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए तैयार नहीं । इसके बजाय उन्होंने अस्पष्ट और संदिग्ध भाषा के पीछे छिपने का विकल्प चुना। सही मायनों में तो यह कमज़ोर दृष्टिकोण वाला ताज़ा बयान बाली लीडर्स डेक्लेरेशन और बाली एनेर्जी ट्रांज़िशन रोडमैप जैसे पिछले समझौतों में की गई प्रतिबद्धताओं से एक कदम पीछे ही है। यह सीधे तौर पर वैश्विक समुदाय को जलवायु कार्रवाई की तात्कालिकता के बारे
में एक निराशाजनक संदेश भेजता है। यह जानना निराशाजनक रहा कि संयुक्त विज्ञप्ति जारी करने में विफलता के पीछे रूस और चीन जैसे प्रमुख देशों की असहमति प्रमुख कारक थी। साल 2030 तक रिन्यूबल क्षमता को तीन गुना करने पर रूस और
सऊदी अरब की आपत्ति, साथ ही जलवायु परिवर्तन पर सहयोग बढ़ाने के लिए चीन के प्रतिरोध, जलवायु मुद्दों से निपटने पर एकीकृत रुख तक पहुंचने में चुनौतियों पर प्रकाश डालते हैं। महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धताओं के प्रति इस तरह की विमुखता एक स्वच्छ और हरित ऊर्जा दुनिया के निर्माण के प्रयासों को काफी हद तक विफल कर देती है, जो कि बढ़ते जलवायु संकट से निपटने के लिए आवश्यक है। विभिन्न संगठनों के ऊर्जा विशेषज्ञों ने जी20 वार्ता में प्रगति की कमी के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सिद्धार्थ गोयल ने जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के मुद्दे को तरजीह न देना और हाइड्रोजन उत्पादन के लिए जीवाश्म-आधारित स्रोतों के उपयोग के संभावित जोखिमों की ओर सही ही इशारा किया है। आगे, ई3जी से मधुरा जोशी इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि भारतीय जी20 की अध्यक्षता द्वारा सामने लाए गए सकारात्मक एजेंडे के बावजूद, इस बयान में देशों के बीच का मतभेद स्पष्ट है। ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल के सीईओ बेन बैकवेल इस बात पर जोर देते हैं कि मजबूत
नीतियों और लक्ष्यों के बिना मौजूदा प्रयास फिलहाल साल 2050 तक एक नेट-ज़ीरो दुनिया हासिल करने की आवश्यक महत्वाकांक्षा से कम है। लेकिन यह स्पष्ट है कि ये वार्ताएं वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय हितों को संरेखित करने की बढ़ती जटिलता को साफ तौर पर सामने रखती हैं। क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला, भू-राजनीतिक हितों और राष्ट्रों के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए एक ईमानदार और निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में भारत के प्रयासों की सराहना करती हैं। भारत ने एनेर्जी एफ़िशियेन्सी, रिन्यूबल एनेर्जी विकास में तेज़ी और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध
तरीके से समाप्त करने पर जोर देते हुए एक सकारात्मक एजेंडा सामने रखा। लेकिन बड़े दुख की बात है कि बैठक के बाद जारी हुए बयान में देशों के बीच विभाजन और मतभेद को उजागर किया, जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय हितों को संरेखित करने की चुनौतियों को दर्शाता है।

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