लैंडयूज बदल सकेंगे विकास प्राधिकरण, शासन ने 10 हजार वर्गमीटर तक के भूखंड का अधिकार स्थानीय व जिला स्तरीय प्राधिकरणों को दिया

देहरादून। भवन निर्माण में कई दफा अवैध निर्माण को इसलिए भी बढ़ावा मिल जाता है, क्योंकि नियमों का पालन करना सुविधा की जगह झमेला बन जाता है। खासकर लैंडयूज परिवर्तन, बिल्डिंग बायलाज में छूट के छोटे-छोटे मामलों के शासन स्तर तक जाने के चलते उनमें काफी समय लग जाता है।

लिहाजा, प्रकरण सुलझने की जगह कई दफा लटक भी जाते हैं। इस स्थिति को समझते हुए अब उत्तराखंड के आवास विभाग ने लैंडयूज (भू-उपयोग परिवर्तन) व बिल्डिंग बायलाज (भवन उपविधि) में एक सीमा तक छूट देने का अधिकार विकास प्राधिकरणों को दे दिया है। इसका सर्वाधिक लाभ जमीनों की अधिक खरीद-फरोख्त वाले देहरादून व अन्य मैदानी क्षेत्रों को मिलेगा।

सचिव आवास शैलेश बगोली के आदेश के मुताबिक, स्थानीय विकास प्राधिकरण व जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण 4000 से 10 हजार वर्गमीटर तक के भूखंड का लैंडयूज अपने स्तर पर परिवर्तित कर सकेंगे। वहीं, 10 हजार से अधिक व 50 हजार वर्गमीटर तक के भूखंड के उपयोग में परिवर्तन का अधिकार उत्तराखंड आवास एवं नगर विकास प्राधिकरण (उडा) को होगा। जो भूखंड 50 हजार वर्गमीटर से अधिक के होंगे, सिर्फ उन्हीं में परिवर्तन का अधिकार शासन ने अपने पास रखा है। पहले 4000 वर्गमीटर से अधिक के भूखंड के सभी मामले शासन को भेजे जाते थे। आम जनता का काम अब प्राधिकरण या अधिक से अधिक उडा के स्तर पर पूरा हो सकेगा।

भवन निर्माण में मानकों में 25 फीसद छूट प्राधिकरण देंगे

एमडीडीए समेत अन्य विकास प्राधिकरणों में भवनों के नक्शे पास कराने में बिल्डिंग बायलाज के मानक देखे जाते हैं। कई दफा व्यवहारिकता को देखते हुए भी छूट दी जाती है और अब मानकों में 25 फीसद तक की ढील विकास प्राधिकरण अपने स्तर पर दे सकेंगे। 25 से अधिक व 50 फीसद तक ढील के मामले विकास प्राधिकरणों की बोर्ड बैठक के माध्यम से पास या निरस्त किए जाएंगे। वहीं, 50 फीसद से अधिक ढील वाले मामले ही शासन को संदर्भित किए जा सकेंगे। अब तक ढील के सभी मामले शासन को भेज दिए जाते थे।

प्राधिकरणों को यह अधिकार भी मिले

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत आवासीय परियोजनाओं के भू-उपयोग परिवर्तन विकास प्राधिकरणों के माध्यम से किए जा सकेंगे।
उद्योग विभाग के सिंगल विंडो के माध्यम से आने वाले प्रस्तावों में भू-उपयोग परिवर्तन विकास प्राधिकरणों की बोर्ड बैठक के माध्यम से होंगे। हालांकि, इससे पहले प्रस्तावों को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित राज्य प्राधिकृत समिति (स्टेट इंपावर्ड कमेटी) कमेटी से पास कराना होगा।

प्लाटिंग का ले-आउट पास नहीं तो लगेगा सिर्फ एक फीसद शुल्क

बिल्डर व प्रापर्टी डीलर अधिकांश प्लाटिंग का ले-आउट पास नहीं कराते हैं। जब नागरिक प्लाट खरीदकर भवन निर्माण के लिए नक्शा पास कराते हैं तो उन्हें ले-आउट पास न होने की सूरत में डेवलपमेंट चार्ज के साथ सब-डिविजन का अतिरिक्त शुल्क देना होता है। अब तक यह शुल्क विकसित क्षेत्रों में सर्किल रेट का एक फीसद, जबकि अविकसित क्षेत्रों में पांच फीसद निर्धारित था। शासन ने इसे सभी क्षेत्रों के लिए महज एक फीसद कर दिया है। वहीं, विस्थापित क्षेत्रों में मूल आवंटी से डेवलपमेंट चार्ज नहीं लिया जाएगा। हालांकि, जमीन को आगे बेचे जाने की दशा में नए आवंटी को यह देना होगा।

गंभीरता से करना होगा अधिकारों का प्रयोग

सचिव आवास शैलेश बगोली ने प्राधिकरणों को यह भी निर्देश दिए हैं कि वह भू-उपयोग परिवर्तन व बिल्डिंग बायलाज में छूट देने में गंभीरता बरती जाए। बहुत जरूरी होने व भूखंड की निकटवर्ती परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही निर्णय किए जाएं। इसके लिए आवश्यक जांच भी कराने को कहा गया है।

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