देहरादून। उत्तराखंड में निजी नाप भूमि पर अब मत्स्य तालाब, वाटर स्टोरेज टैंक व रिसाइक्लिंग टैंक के निर्माण के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसे सरकार ने अब गैर खननकारी गतिविधि घोषित कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने ईंट मिट्टी व सड़क भरान के लिए साधारण मिट्टी को निकालने की प्रक्रिया को भी खनन की परिभाषा से बाहर कर दिया है। हालांकि, इनसे निकलने वाले खनिज पर रायल्टी ली जाएगी। इससे निर्माण कार्यों में तेजी आ सकेगी।
प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड उप खनिज नियमावली बनाई हुई है। इसमें यह व्यवस्था है कि निजी भूमि पर विकास के लिए पहाड़ी के कटान, बेसमेंट की खुदाई अथवा भूमि के समतलीकरण किए जाने पर निकलने वाली साधारण मिट्टी को भूस्वामी यदि अपने उपयोग में लाता है तो यह खनन की श्रेणी में नहीं आएगा। इस कार्य के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
इसमें यह भी व्यवस्था है कि इसके लिए जेसीबी का प्रयोग किया जा सकता है। यदि भूस्वामी के पास इस मिट्टी को रखने की व्यवस्था नहीं है तो उसे तहसीलदार द्वारा घोषित डंपिंग जोन में संरक्षित किया जाएगा। डंपिंग जोन के अतिरिक्त मिट्टी व अन्य खनिज का इस्तेमाल दूसरी जगह भरान में इस्तेमाल करने के लिए रायल्टी ली जाएगी। अब सरकार ने इस नियमावली में संशोधन करते हुए एक और नई व्यवस्था की है।
इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि पर्यावरण व जलवायु मंत्रालय द्वारा किए गए प्रविधान के अनुसार नदी, सहायक नदी व गदेरे के तल से लगी निजी भूमि को छोड़ शेष अन्य निजी भूमि के समतलीकरण, वाटर स्टोरेज टैंक, रिसाइक्लिंग टैंक, मत्स्य पालन के तालाब के निर्माण से जुड़े कार्य के लिए पर्यावरणीय अनुमति नहीं लेनी होगी। हालांकि, इससे निकले उप खनिज जैसे बालू, बजरी, बोल्डर और मिट्टी के लिए नियमानुसार रायल्टी और अन्य शुल्क देने होंगे।
इस कार्य के लिए आवेदन खनन विभाग के सक्षम अधिकारी के समक्ष देना होगा। इसमें अधिकतम छह माह के भीतर स्वीकृति प्रदान करनी होगी। सचिव, औद्योगिक विकास आर मीनाक्षी सुंरदम ने कहा कि इससे विकास कार्यों में तेजी आएगी और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।