एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वह सहकारिता मंत्री अमित शाह ने देश मे सहकारिता मंत्रालय का गठन किया ताकि देश में खुशहाली लाई जा सके। वहीं उत्तराखंड में सहकारिता से जुड़े कुंछ लोग स्वयं ही सशख्तीकरण के इस बड़े विजन पर पलीता लगा रहे हैं। विपक्ष भी इस मुद्दे को लपकने लगा है।
जी हां राज्य सहकारी बैंक के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दान सिंह रावत व अन्य ने सहकारिता चुनाव प्राधिकरण पर सवाल उठाए हैं। उनके साथी मांगे राम ने कोर्ट में याचिका डाली है और स्वयं निवर्तमान अध्यक्ष ने कोेर्ट जानी की बात कही है। यह खबर मीडिया में सुर्खियां बटोर रही है ‘
सहकारिता के चुनाव में महिला आरक्षण के मामले को चुनौती दे डाली है। वहीं नए वोटरों से भी वोट का अधिकार छीनने के लिए याचिका डाली है।
बता दें कि उत्तराखंड राज्य देश का पहला ऐसा राज्य बना था जिसमें सहकारिता के बोर्ड में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण तय हुआ था। केंद्र की जन विकास व विकासवाद की सोच के अनुपालन में उत्तराखंड सरकार ने बाकायदा कैबिनेट में सहाकारिता में आरक्षण के प्रस्ताव को लाई थी। ऐसे में स्वयं भाजपा का झंडा उठाए सहकारिता के निवर्ततमान अध्यक्ष ने खुले तौर पर एक हिसाब से अपने शीर्ष नेतृत्व से बगावत कर डाली है।
वहीं इस मामले में सहकारिता चुनाव प्रभारी खिलेंद्र चौधरी ने यह कहकर किनारा कर दिया है कि यह उनका निजी बयान है।
बात निकली है तो दूर तक जाएगी। जहां इस मसले पर कांग्रेस भाजपा को घेरने की फिराक में थी। वहीं अपनों ने ही पराई आग को और सुलगाने का काम कर दिया है। अब देखना होगा कि भाजपा और भाजपा के नेता अपने शीर्ष नेतृत्व के महिता सशख्तीकरण व कल्याण के इस सपने को कैसे जमीन पर उतार पाती है। कहीं ऐसा ना हो कि यह निवर्तमान सहकारिता अध्यक्ष दान सिंह रावत की यह स्वार्थपरक मंशा कहीं विपक्षी कांग्रेस के हाथों में संजीवनी ना थमा दे।