हमें मालूम था, कि ‘कठौच’ जी को मिलेगा ‘पदम’

हमें मालूम था, कि ‘कठौच’ जी को मिलेगा ‘पदम’

बेशक, हमें मालूम था, कि ‘कठौच’ जी को मिलेगा ‘पदम’

पौड़ीः किसी पुरस्कार या सम्मान की मह्ता तभी बढ़ती है जब सर्वदा योग्य लोग उसके पात्र बनते हैं। पहले यह आम धारणा बन चुकी थी कि राष्ट्र स्तर के यह सम्मान उन्हीं लोगों को मिलते हैं जिनकी सत्ता के गलियारों तक पहुंच होती है। लेकिन जब गत वर्ष राहीबाई सोमा, हरेकाला हजब्बा, तुलसी गौड़ा, मुहम्मद शरीफ, मंज्जमा जोगाठी जैसे गुमनाम व सच्चे साधकों को पद्म से सम्मानित किया गया तो तब मालूम हो गया था कि पौड़ी के डा यशवंत कठौच जैसे साधक अब सियासी चारणों द्वारा फैलाए जाने वाली अंधियाली में ज्यादा देर तक गुम नहीं रहेंगे। इसी लिए लिखा है कि ‘हमें मालूम था’।

इस बार पदम सम्मान के लिए पौड़ी के निर्विवाद साधक डा यशवतं कठौच का नाम ज्यों ही आया, हवाओं में खुशियां और आत्मगौरव एक साथ झूमने लगे। सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट, इलेक्ट्रानिक सब में कठौज जी के त्याग व साधना की शानदार कवरेज। लाजवाब, उत्साहवर्द्धक, सलीकेदार कवरेज।

मूल रूप से पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लाक के रहने वाले जाने माने इतिहासकार और शिक्षक रहे डॉ यशवंत सिंह ने इतिहास और पुरातत्व पर अतुलनीय कार्य किया है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी साधना के लंबे कालखंड में कभी भी किसी पुरस्कार या सम्मान ने चर्चाभर तक के लिए स्थान नहीं पाया।

निसंदेह ही जिसने भी उनका नाम राष्ट्रीय पुरूस्कार के लिए भेजने की प्रक्रिया की होगी वह कहीं न कहीं साधना, शिक्षा, शोध और इतिहास के साथ ही पदम की क्षीण होती प्रतिष्ठा को लेकर भी संजीदा ही रहा होगा। इस बस के बीच सच्चाई को हासिए पर सरकाते रहे सियासी आडंबर को जमींदोज कर सच्चे हीरे तलाशने वाली मोदी सरकार भी निसंदेह ही बधाई की पात्र है।

आज कठौच जैसे साधकों के जरिए पदम की वह गरिमा फिर से लौट रही है जिसे पूर्व के समय में पहुंच और जुगाड़बाजी के आघात ने क्षीण कर दिया था। डा यशवंत सिंह कठौच जी के साथ ही देश के सभी सच्चे और गुमनाम साधकों को बहुत बहुत बधाई।

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