चार धाम में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की निश्चित संख्या की बाध्यता हटी, पर राज्य सरकार की बढ़ी चुनौती

चार धाम में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की निश्चित संख्या की बाध्यता हटी, पर राज्य सरकार की बढ़ी चुनौती

देहरादून । आखिरकार उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार को राहत देते हुए चार धामों में दर्शन के लिए निश्चित संख्या की बाध्यता हटा ली है। अब तक चारों धाम में प्रतिदिन यात्रियों की अधिकतम संख्या निर्धारित थी। इसके तहत बदरीनाथ में 1000, केदारनाथ में 800, गंगोत्री में 600 और यमुनोत्री में 400 श्रद्धालुओं को ही दर्शनों की अनुमति थी। लंबे समय से तीर्थ पुरोहित और चार धाम यात्रा मार्गों के कारोबारी अधिकतम संख्या बढ़ाने की मांग कर रहे थे। इन लोगों का आरोप था कि राज्य सरकार अदालत में सही तरीके से मामले की पैरवी नहीं कर रही हैं। इसको लेकर व्यापारी और तीर्थ पुरोहित आंदोलन भी कर रहे थे। नि:संदेह अदालत के इस आदेश से इनको मुंह मांगी मुराद मिल गई है। इतना ही नहीं, एक दिन पहले सरकार ने भी श्रद्धालुओं को राहत देते हुए कोविड गाइड लाइन में कुछ परिवर्तन किए हैं। इसके तहत अब श्रद्धालुओं को सिर्फ चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की वेबसाइट पर ही पंजीकरण करना होगा। पहले उन्हें स्मार्ट सिटी पोर्टल पर भी रजिस्ट्रेशन कराना पड़ रहा था।

इस दोहरी व्यवस्था से यात्रियों को भी गफलत हो रही थी। हालांकि नई व्यवस्था में भी चार धाम आने वाले यात्रियों को वैक्सीनेशन की दोनों डोज अथवा 72 घंटे पहले की कोरोना जांच की रिपोर्ट तो दिखानी ही होगी। उच्च न्यायालय ने भले ही सरकार को राहत दी हो, लेकिन सरकार के लिए चुनौती बढ़ गई है। सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दोहरा चुके हैं कि राज्य में कोविड के मामलों में कमी अवश्य आई है, लेकिन कोरोना पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। उन्होंने आम जन का आह्वान किया है कि कोरोना गाइड लाइन का पालन करें। जाहिर है यात्रियों से गाइड लाइन का पालन कराना ही शासन और प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा। मसलन ऐसे ही मामले में सिस्टम की नाकामी की एक झलक पिछले दिनों मसूरी में देखने को मिली।

सप्ताहांत में मसूरी पहुंचने वाले सैलानियों की तादाद इतनी थी कि कई लोगों को वाहनों में ही रात गुजारनी पड़ी। यह हाल तब था जबकि प्रशासन ने वीकेंड पर मसूरी जाने वालों की अधिकतम संख्या 15 हजार निर्धारित कर रखी है, लेकिन कोरोना गाइड लाइन का पालन करने में कहीं न कहीं कोताही की जा रही है। सितंबर अंत या अक्टूबर के शुरुआती दिनों में मसूरी में बाहर रात बिताना कितना कष्टकर है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। अब विचार करने योग्य बात यह है कि यदि धामों में यह स्थिति बनी तो क्या होगा। जाहिर है सरकार को न केवल व्यवस्था बनानी होगी, बल्कि व्यवस्था को सख्ती से लागू भी करना होगा

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